Atma-Bodha Lesson # 47 :
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वक्ता : पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी
आत्म-बोध के 47th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्मा के विज्ञानं अर्थात आत्म-साक्षात्कार के दो महत्वपूर्ण लक्षण दिखाते हैं। जब हम अपने शरीर और मन आदि उपाधि के अपने को अलग देख रहे हैं तो हम और हमारी दुनिया दोनों अलग दिख रहे होते हैं। पहला लक्षण है - कि हम पूरी दुनियाँ को अपने अन्दर देखते हैं। हम अधिष्ठान हैं और सब नाम-रूप हमारे अन्दर विद्यमान हैं - जैसे सागर में अनंत लहरें। नाम-रूप सब नश्वर हैं लेकिन हम उन्हें रहने हेतु सत्ता प्रदान कर रहे हैं। दुनिया हमारे अन्दर एक स्वप्न की तरह से है। जैसे स्वप्न से जगाने के बाद हम स्वप्न को अपने अंदर मन का विलास मात्र देखते हैं वैसे ही अब यह पूरा ब्रह्माण्ड हमारे अंदर दिखाई दे रहा है। दूसरा लक्षण - हम सब की आत्मा हैं।
इस पाठ के प्रश्न :
- १. वेदान्त में योगी का अर्थ क्या होता है, और सम्यक विज्ञानवान योगी कौन होता है ?
- २. ये दुनिया हमारे अंदर है - इसका अर्थ समझाएं ?
- ३. हम सबके अंदर किस रूप में विराजमान होए हैं ?
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