Atma-Bodha Lesson # 34 :
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आत्म-बोध के 34th श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की गुरुमुख से प्रामाणिक अर्थात वेदांत-प्रदीपादित आत्म-बोध प्राप्त करने के बाद उसे अत्यंत तीव्र भावना के साथ आत्मसात करना होता है। अपनी अभी तक की अस्मिता सम्बंधित विपरीत धारणाओं को निराधार समझते हुए उनका निषेध करते हुए, अपनी नई पहचान बहुत ही तीव्रता से हृदयांवित करना चाहिए। ये ध्यान रहे की यहाँ मात्र शब्द बोलने से कुछ नहीं होगा, इसलिए पहले एक-एक शब्द का अर्थ अच्छी तरह से देखें और फिर उस अर्थ की आवृत्ति करें।
इस पाठ के प्रश्न :
१. स्पष्ट ज्ञान उत्पन्न होने के बाद उसकी तीव्र भावना उत्पन्न करने का क्या प्रयोजन होता ?
२. ध्यान में विचारों को शांत करें की अपनी वास्तिकता के ज्ञान की भावना लाएं?
३. विपरीत अस्मिता क्यों और कैसे उत्पन्न होती है ?
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