इस पार भी तू-उस पार भी तू
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कमबख्त कैसा आशिक था
दिल और मुल्क की सरहदों को एक समझ बैठा
ये भी नहीं जान पाया कि दो मुल्कों की सरहदें ज़ज्बात-ए-मोहब्बत नहीं समझती...
समझे भी आखिर क्यों
क्यूँ कि सरहद का मतलब ही बंटवारा होता है,,,,
...मगर सरहदें चाहे कितनी हों,कैसी भी हों......
..........
..कतरा - कतरा बहती रहती हो तुम
हर वक्त - हर लम्हा मेरी नब्ज मे
नब्ज रुक भी गयी कभी - तो क्या फर्क पड़ेगा
मेरे साथ ही तो जायेगी तुम्हारी मोहब्बत
मेरी रूह का हमसफ़र बनकर
इसलिए सरहदे हैं तो क्या हुआ
हम---मौहब्बत छोड़ नही सकते
हदें भी तोड़ नही सकते
क्यों कि---
इनके--- इस पार भी तू
----------उस पार भी तू
दोनो तरफ ---बस तू ही तू---तू ही तू---बस तू ही तू
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