The Broken News | Short Review | Sajeev Sarathie
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The brokan mews का पहला सीजन मुझे बहुत पसंद आया था, सो दूसरा जब से आया देखने का मन था। लेकिन समय नहीं मिल पा रहा था, खैर इस सन्डे फाइनली इसे निपटा दिया। कहने को तो ये सीरीज एक अंग्रेजी सीरीज प्रेस का हिंदी संस्करण है पर इसे देखते हुए आपको अपने आस पास मीडिया की दुनिया में घटी ढेरों घटनाएं याद आ जायेगें। यहां आपको पैगेसिस मिलेगा, एल्ट्रोल बॉन्ड मिलेगा, आई टी ट्रॉल्स मिलेंगे, कहीं आपको सुशांत सिंह राजपूत याद आए तो कहीं अर्नब, कहीं रवीश कुमार तो कहीं रुबिका लियाकत। तारीफ करनी पड़ेगी विनय वैकल की जिन्होंने इसे शुरू से लेकर अंत तक पूरी तरह एंगेज कर के रखा है। राइटिंग टॉप नोच है और एक एक संवाद मारक।
सीरीज में एक तरफ सरकारी या कहें "गोदी" मीडिया है जिसके संचालक जयदीप अहलावत हैं तो दूसरी तरफ लिबरल या कहें "देशद्रोही" मीडिया है जहां कमान संभाली है श्रिया पिलगांवकर ने और दोनों ही एक दूसरे से विपरीत एक्सट्रीम नैरेटिव सेट करते हैं जो टीआरपी की बिसात पर खेले जाने वाला एक गंदा खेल बनके रह जाता है। पत्रकारिता से कोसों दूर ये लोग अपनी सहूलियत अनुसार अपने अपने पक्ष को चमकाने में लगे रहते हैं, इन्हें वास्तविक समस्याओं से कोई मतलब नहीं, फिर चाहे इसके लिए किसी के दुख को उधेड़ना पड़े, किसी का कैरेक्टर असासिनेशन कर उसे नंगा करना पड़े, या फिर झूठे बयानों से सत्ता पक्ष या विपक्ष को नुकसान पहुंचना पड़े। और इन सबके बीच एक निडर, गैर पक्षपाती पत्रकारिता का परचम बुलंदी से थामे नजर आती है सोनाली बेंद्रे। आखिरी एपिसोड में श्रिया का मोनिलॉग आज के हर पत्रकार को सुनना चाहिए और केवल पत्रकार ही नहीं बल्कि हम दर्शकों को भी।
प्रमुख कास्ट तो खैर है ही शानदार पर उनके अलावा भी फैसल रशीद, तारक रैना और गीता ओहल्यान का काम विशेष उल्लेखनीय है। क्यों अच्छे पत्रकार एंकर बन जाने के बाद अपना असली धर्म भूल जाते हैं ? क्यों किसी कम जानकर को भी एक नरेटिव सेट करने के लिए मेलोड्रामेटिक एंकर बना दिया जाता है ? क्यों व्यवस्था के ये चौथा खंभा आज खोखलाता जा रहा है ? ये सीरीज बहुत से सवाल छोड़ जाती है।
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