ग़ज़ल - नियामतें जो मिली (Ghazal - Niyamaten Jo Mili)
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नियामतें जो मिली शुक्र सुब्ह शाम करें।
कि ख़्वाहिशों को कभी भी न बे-लगाम करें।
वो मुस्कुरा के हैं पूछे कि हाल कैसा है,
सजा के झूठ लबों पर दुआ सलाम करें।
सजा रखे थे जो अरमां लुटा दिए तुम पर,
बचे हुए हैं ये सपने कहो तमाम करें।
ख़ता नहीं थी हमारी पता नहीं तुझको,
तुझे यकीं जो दिलाये वो कैसा काम करें।
बिकी हुई है अदालत जो ठीक दो कीमत,
चलो कहीं से गवाहों का इंतिज़ाम करें।
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सुर और संगीत - साधना रस्तोगी
शायरी - विवेक अग्रवाल 'अवि'
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